देहरादून
शीशमबाड़ा स्थित सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट व रिसाइक्लिंग प्लांट का संचालन कर रही कंपनी को नगर निगम प्रशासन बाहर का रास्ता दिखाने की तैयारी कर रहा है। एक सितंबर से काम ठप करने की चेतावनी के बाद नगर निगम ने पत्र भेजकर कंपनी को बातचीत के लिए आमंत्रित किया, लेकिन अभी तक जवाब नहीं आया है। ऐसे में माना जा रहा है कि अगर कंपनी, नगर निगम की शर्तों पर काम करने के लिए तैयार नहीं होती है तो उसका विकल्प तलाशा जा सकता है।
बता दे कि शहर में पांच कंपनियां कूड़ा उठाने से लेकर उसके निस्तारण का कार्य कर ही है। रैमकी कूड़ा निस्तारण प्लांट का संचालन करती है। जबकि, चेन्नई एमएसडब्ल्यू, मैमर्स सनलाइट और मैमर्स भार्गव 98 वार्डों में कूड़ा उठाती है। वर्ष 2018 से शहर में कूड़ा निस्तारण और वर्ष 2019 से घर-घर कूड़ा उठान का काम देख रही रैमकी और चेन्नई एमएसडब्ल्यू कंपनी ने एक सितंबर से काम बंद करने का नोटिस दिया है। इस संबंध में शीशमबाड़ा प्लांट और हरिद्वार बाईपास स्थित कूड़ा ट्रांसफर स्टेशन पर बाकायदा नोटिस भी चस्पा किया गया है। नोटिस में दोनों कंपनियों में कार्यरत करीब 500 कर्मचारियों की नियुक्ति भी रद्द करने की चेतावनी दी गई है।
दोनों कंपनियों ने काम छोड़ने के लिए निगम की कार्यप्रणाली और समय से भुगतान न करना बताया है। इसके जवाब में नगर निगम ने नोटिस जारी कर कंपनी को बातचीत के लिए बुलाया है, लेकिन अभी तक कंपनी ने वार्ता के लिए हामी नहीं भरी है। ऐसे में नगर निगम ने भी सख्त रुख अख्तियार कर लिया है। अधिकारियों का कहना है कि बातचीत से मामला सुलझाने की कोशिश जारी है, लेकिन अगर कंपनी अपने रुख पर कायम रहती है और शर्तों के मुताबिक कार्य में सुधार नहीं करती है तो नगर निगम वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर नए टेंडर की प्रक्रिया शुरू कर सकता है। बताया जा रहा है कि इसकी तैयारी भी शुरू कर दी गई है।
नगर निगम और कंपनियों के बीच विवाद की जड़
वर्ष 2008 से ही देहरादून में कूड़ा निस्तारण प्लांट लगाने के प्रयास शुरू हो गए थे, लेकिन जमीन खोजने से लेकर एनओसी लेने तक कई साल लग गए। वर्ष 2018 में प्लांट का कार्य शुरू हो सका। शीशमबाड़ा में सवा आठ एकड़ में प्लांट शुरू हुआ तो दावा किया गया कि वर्षों तक कूड़ा निस्तारण की दिक्कत नहीं होगी। यह भी दावा था कि यह देश के उन गिने-चुने प्लांट में शामिल होगा, जो पूरी तरह से कवर्ड होगा। प्लांट से दुर्गंध नहीं आएगी, लेकिन न तो इसे पूरी तरह कवर किया गया और न ही दुर्गंध रोकी जा सकी। स्थिति ये है कि ग्रामीण कई बार यहां हंगामा कर चुके हैं और दुर्गंध के कारण बीमार होने तक की शिकायत कर चुके हैं। इसके अलावा दो बार प्लांट में कूड़े के पहाड़ में आग लग चुकी है। अप्रैल में जब आग लगी तो अग्निशमन की गाड़ियां भी नहीं बुझा पाईं। कई दिनों तक कूड़े में आग लगी रही। इसके बाद निगम ने प्लांट की निगरानी शुरू कर दी और लापरवाही पर भुगतान रोकने के साथ जुर्माना लगाना शुरू कर दिया। इसके बाद कंपनी ने काम छोड़ने की चेतावनी दे डाली।
निगम प्रशासन के अनुसार, कंपनी के लापरवाही की फेहरिस्त लंबी है। कूड़े का ठीक से निस्तारण नहीं किया जा रहा है। कूड़ा निस्तारण के बाद बचने वाले अवशेष के लिए बनाया गया लैंडफिल कुछ ही वर्षों में भर गया है। इसका कारण कूड़े को ही लैंडफिल में डालना है। यहां से निकलने वाले गंदे पानी से लेकर चैंबर तक में कई तरह की शिकायतें आ रही हैं। कूड़ा निस्तारण के दौरान बनने वाली खाद और आरडीएफ यानी रिफ्यूज्ड ड्राई फ्यूल के बड़े जखीरे के यहां पड़े हैं। इनके उचित निस्तारण में कंपनी फेल हो चुकी है।
हर महीने होता है करीब 98 लाख का भुगतान
नगर निगम की तरफ से कंपनी को हर महीने करीब 98 लाख रुपये का भुगतान किया जाता है। प्लांट में सही तरीके से कूड़ा निस्तारण न होने के कारण यह समस्या आ गई है कि भविष्य में कूड़ा कहां डाला जाए। ऐसे में नगर निगम प्रशासन कंपनी पर कोई दरियादिली नहीं दिखाना चाहता है।
नगर आयुक्त मनुज गोयल ने बताया कि कंपनी के काम की लगातार शिकायत मिलने पर जुर्माने और भुुगतान रोकने की कार्रवाई की गई है। कूड़े का ढंग से निस्तारण करने में कंपनी फेल हो गई है। कंपनी ने एक सितंबर से काम बंद करने का नोटिस दिया है। इसके जवाब में निगम की ओर से भी कंपनी को नोटिस देकर बातचीत के लिए बुलाया गया है, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया है। शहर की सफाई से कोई समझौता नहीं करेंगे। वैकल्पिक व्यवस्था बनाने की तैयारी कर ली गई है।
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